Thursday, September 23, 2010

कैसा है यह सतीत्व तेरा






एक पति है मन के भीतर, एक है तेरा घरवाला।


प्रीत की रीत निभाई किससे, भड़काई उर अन्तरज्वाला॥
आज बनी है वधू किसी की, बैठी है वो ओढ  दुशाला॥


पति तो केवल एक ही होता, मन से वरण किया है जिसका।
बाकी सब है दुनियादारी, कौन हुआ है यहां पे किसका॥


प्रीत की डोर बहुत नाजुक है, ऐसे इससे मत खेलो।
डोर के टूटे दिल टूटेगा, दो-दो दिल से ना खेलो॥


सच का सामना कठिन है फिर भी, झूठ बोलना नहीं सरल।
कुछ करने से पहले सोचो, आगे फिर क्या होगा कल॥


प्रेम नहीं है सांप की केचुल, छोड  दिया और भूल गये।
जीवन भर तड पोगे तुम भी, कभी न तुमको आये कल॥


तोड  दिया दिल मेरा तुमने, बाप की आन बचाने को।
पोत दी मेरे मुख पे कालिख, मैं क्या बतलाऊं जमाने को॥


जिसके गर्व बहुत करता था, आज वो मुझसे हुई जुदा।
प्रीत निभाई ठोकर खाई, कैसी किस्मत मिली खुदा॥


कसम खुदा की मैं कहता हूं, मुझको भूल न पाओगे।
बेशक संग सजन के होगे, मन में हमें ही पाओगे॥


जब आयेगी हिचकी तुमको, भ्रम मत करना साजन का।
जब तक नाम न मेरा लोगे, छुटकारा न पाओगे॥


दिल के टूटे शोर न होता, पर दर्द बहुत ही होता है।
दुनिया जब है जश्न मनाती, ये अन्दर-अन्दर रोता है॥


चित्र  


topnews.in 


से साभार

3 comments:

हरिमोहन सिंह said...

सोने के कगंन चादी की पायल कैसे तुझे सुहाती होगी,
हँसी में छिपा क्रन्‍दन तेरा भोले साथी को छलता होगा ,
उड उड आने को आकुल मन तेरा पंख बार बार फैलाता होगा,

Udan Tashtari said...

जब आयेगी हिचकी तुमको, भ्रम मत करना साजन का।
जब तक नाम न मेरा लोगे, छुटकारा न पाओगे॥


चलो, यही सही..

हिमांशु पाण्‍डेय said...

आप सभी के प्रति टिप्पणी करने के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं