Tuesday, December 29, 2009

सरकारी क्षेत्र के असरकारी कर्मचारी- भाग-२


आज के समय में सरकारी क्षेत्र के अ-सरकारी कर्मचारियों की संख्या में काफी इजाफा हो गया है और समय के साथ-साथ यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। इन अ-सरकारी कर्मचारियों की संख्या बढ़ने का एक और कारण देश में व्याप्त होता भ्रष्टाचार भी है जिसके चलते अधिकारी वर्ग अपने पद की प्रतिष्ठा और गरिमा बचा पाने में असमर्थ प्रतीत हो रहे हैं इसका परिणाम यह होता है कि उनके अन्दर सत्य की शक्ति का अभाव होने के कारण वे अपने अधीनस्थों को किसी गलत काम को करने न तो रोक ही पाते हैं और न ही उन पर प्रभावी नियंत्रण ही रख पाते हैं। ऐसी स्थिति में अधिकारी बनाम कर्मचारी का युद्ध सदैव चलता रहता है। इस युद्ध की स्थिति में अधिकारी अपना एक विश्वासपात्र अ-सरकारी कर्मचारी नियुक्त कर लेता है और उससे वे सब सरकारी काम करवाता है जो कि उसे लगता है कि सरकारी कर्मचारी से करवाने से गोपनीयता भंग हो सकती है। मतलब तो आप समझ ही रहे होंगे।
कुछ-कुछ विभागों में तो यह देखा गया है कि अधिकारी अ-सरकारी कर्मचारी को नियुक्त करने को एक स्टेटस सिम्बल के रूप में देखते हैं। जैसे ही वे किसी कार्यालय में पहुंचते हैं वहां की अव्यवस्थाओं से खिन्नता जाहिर करते हुए अपने किसी अ-सरकारी आदमी को नियुक्त कर लेते हैं। सामान्यतया ये अ-सरकारी कर्मचारी उनके अति विश्वासपात्र होते हैं जिनके बलबूते वे अपनी सत्ता चलाते हैं।
कहीं-कहीं अधिकारी वर्ग इन अ-सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति मजबूरी में भी करते हैं। कई ऐसे कार्यालय भी हैं जहां विभागाध्यक्षों की लापरवाही, लोभ, सत्तालोलुपता, भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता के कारण अधिकारी-कर्मचारी सम्बन्धों पर बड़ा प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। ऐसे कार्यालयों में अधिकारी कर्मचारी के नियंत्रण में नहीं रहना चाहते हैं। ऐसे में अधिकारियों को तब बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जब उन्हें समयान्तर्गत किसी कार्य को पूर्ण करना हो या समय से कोई सूचना शासन को पहुंचानी हो। ऐसे अवसरों पर अधिकारियों को कर्मचारियों की बड़ी अनुनय-विनय करते देखा जा सकता है क्योंकि शासन की बैठकों में अधिकारी को ही उपस्थित होना होता है। इन विपरीत परिस्थितियों में ये अ-सरकारी कर्मचारी बड़े काम के मोहरे साबित होते हैं। अ-सरकारी कर्मचारी सरकारी कर्मचारियों की तुलना में सामान्यतया अधिक योग, कुशल, दक्ष एवं प्रशिक्षत होते हैं। सरकारी कर्मचारियों की तुलना में इनमें केवल अनुभव की कमी होती है जो कि धीरे-धीरे एक-दो साल में ये ग्रहण कर लेते हैं। कहीं-कहीं तो यह भी देखा गया है कि ये अ-सरकारी कर्मचारी सरकारी कर्मचारियों से भी ज्यादा असरकारी यानी कि प्रभावशाली स्थान बना चुके हैं। कई विभाग तो ऐसे हैं जहां का अधिकतम काम इन अ-सरकारी कर्मचारियों के भरोसे ही हो रहा है। अ-सरकारी कर्मचारियों की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता है।
ऐसा कहना सत्य नहीं होगा कि अ-सरकारी कर्मचारी केवल सरकारी धन के दुर्विनियोग के प्रयोजन से नियुक्त किये जाते हैं। बल्कि सत्य तो यह है कि इनकी नियुक्ति समय की जरूरत है और इससे सिस्टम को एक नया रूप मिला है। यदि सरकार इन अ-सरकारी कर्मचारियों पर कोई अध्ययन कराये तो उसे देश एवं प्रदेश में व्याप्त एक बहुत बड़ी समस्या और उसका समाधान ये अ-सरकारी कर्मचारी मुहैया करा सकते हैं। सरकार जनता की सेवा के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति करती है और जनता की हमेशा यह शिकायत रहती है कि कर्मचारी सही से काम नहीं करते। किन्तु जहां-जहां ये अ-सरकारी कर्मचारी नियुक्त हुए हैं वहां व्यवस्था में कुछ न कुछ परिवर्तन अवश्य आया है जिसे हम इन अ-सरकारी कर्मचारियों की उपयोगिता के रूप में रेखांकित कर सकते हैंे। अ-सरकारी कर्मचारियों की कुछ उपयोगिता या व्यवस्था में उनके योगदान को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-
१. सामान्यतया यह देखा गया है कि एक अ-सरकारी कर्मचारी सरकारी कर्मचारी की तुलना में अधिक निष्ठा, कार्यकुशलता, लगन, मेहनत एवं ईमानदारी से काम करता है। इसका कारण स्पष्ट है कि उसे यह पता होता है उसकी यह काबिलियत ही उसे किसी सरकारी कार्यालय में स्थापित बनाये रख सकती है। यही वह एक चीज की कमी इस कार्यालय में थी जिसकी पूर्ति के लिए उसे लाया गया है और सबसे बड़ी बात यह कि यदि उसने इन मानकों का पालन नहीं किया तो किसी भी समय उसे उसकी सेवाओं से हटाया जा सकता है। तो क्या इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सरकारी कर्मचारियों के कथित निकम्मेपन का कारण उनकी सेवाओं की स्थायी प्रकृति का होना है? २. सीमित साधनों में अधिकतम उत्पादकता का प्रयास - अ-सरकारी कर्मचारियों में यह गुण पाया जाता है कि वे व्यवस्था में व्याप्त कमियों के कारण न-नुकुर न करके केवल काम पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं। वे विषम से विषम परिस्थितियों में काम करने को तत्पर रहते हैं। क्योंकि उनके मन में कहीं न कहीं यह बात जरूर होती है कि मुझे अपने काम से मतलब है न कि पूरे कार्यालय की व्यवस्था से। ३. दुष्प्रेरकों से प्रभावित न होना - मेरे हिसाब से हर वह व्यक्ति जो अपने प्रभाव से किसी कर्मचारी को उसके सामान्य कार्य से बहकाये वह दुष्प्रेरक है। सामान्यतया अ-सरकारी कर्मचारी दुष्प्रेरकों के प्रभाव से रहित होते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी नियुक्ति और पदच्युति में इन कथित दुष्प्रेरकों की कोई भूमिका नहीं रहती है। ४. कार्यों को अधिक कुशल सम्पादन - अ-सरकारी कर्मचारी सरकारी कार्यालय के किसी कार्य पर अपना अधिपत्य नहीं समझता और यही कारण है कि वह किसी काम को लटकाये नहीं रखना चाहता। इसका परिणाम यह होता है कि कार्य निर्बाध गति से अनवरत चलता रहता है। ५. अ-सरकारी कर्मचारी कम खर्चीले होते हैं- जहां एक सरकारी कर्मचारी को पन्द्रह से बीस हजार रूपये तनख्वाह पर रखकर भी कार्य करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता वहीं अ-सरकारी कर्मचारी महज तीन से छ: हजार में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। सरकारी कर्मचारी की तुलना में अधिक कुशलता से कार्य का निष्पादन करते हैं और इनका मनमाना उपयोग भी किया जा सकता है। सस्ता भी बढ़िया भी। ६. नियुक्ति प्राधिकारी के प्रति पूर्ण निष्ठा - अ-सरकारी कर्मचारी अपने नियुक्ति प्राधिकारी के प्रति पूर्ण निष्ठावान पाये जाते हैं। यही कारण है कि ये अन्य अधिकारियों का प्रभावशाली कर्मचारियों के दबाव में नहीं आते हैं। ये न तो किसी आन्तरिक न तो किसी वाह्य अधिकारी के ही दबाव में आते हैं। इस कारण से भी कार्य को कुशल सम्पादन अनवरत गति से चलता रहता है। ७. यूनियनों और कर्मचारी संगठनों से प्रभावित नहीं होते - चंूकि ये अ-सरकारी कर्मचारी किसी यूनियन अथवा कर्मचारी संगठन के सदस्य नहीं होते हैं इसलिए ये इन संगठनों और यूनियनों के प्रस्तावों के द्वारा भी प्रभावित नहीं होते हैं। ८. समय की बचत - अ-सरकारी कर्मचारी अपने पास किसी काम को अधिक समय तक लम्बित नहीं रखना चाहते और यदि कोई जटिल समस्या उनके सामने आती है तो वे उस समय तकनीकी का अधिकतम उपयोग कर उसे सरलतम रूप में परिवर्तित कर लेते हैं। वे किसी सरकारी ढर्रे पर चलने के आदी नहीं होते हैं।
अ-सरकारी कर्मचारियों से केवल लाभ ही होता हो, ऐसा नहीं है। इनके द्वारा विभागों को कुछ हानियां भी हैं। अ-सरकारी कर्मचारियों की सामाजिक और आर्थिक जिन्दगी से हम आगे की पोस्टों में परिचित होंगे।

Saturday, December 26, 2009

सरकारी क्षेत्र के असरकारी कर्मचारी...........



   एक समय हुआ करता था जब कि हम किसी से परिचय प्राप्त करते समय उससे पूंछा करते थे कि आप किस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं तो उसके जवाब के लिए उसके पास केवल दो विकल्प ही होते थे या तो वह कहता था कि वह सरकारी क्षेत्र में काम करता है या कहता था कि प्राइवेट सेक्टर में काम करता है। परन्तु आज के तकनीकी युग में जिस प्रकार से नयी-नयी तकनीकियों का आविष्कार हो रहा है उसी तरह से इन क्षेत्रों में भी एक नये क्षेत्र का भी उद्भव पिछले कुछ वषों में हुआ है, और उस नये क्षेत्र के कर्मचारी हैं- सरकारी क्षेत्र के असरकारी कर्मचारी। चौंकिये नहीं! यह असरकारी शब्द सरकारी क्षेत्र के प्रभावशाली कर्मचारियों की श्रेणी नहीं है बल्कि यह उन कर्मचारियों की श्रेणी है जो अ-सरकारी हैं और सरकारी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। 
  जिन लोगों का सरकारी कार्यालयों से दूर-दूर तक नाता नहीं होगा उन्हें शायद मेरी बात पर आश्चर्य भी हो रहा होगा कि वास्तव में कर्मचारियों की ऐसी भी श्रेणी हो सकती है, लेकिन वे लोग जो सरकारी कार्यालयों से सम्बन्धित हैं वे इन नयी श्रेणी के कर्मचारियों से भली-भांति परिचित होंगे। असरकारी कर्मचारी जैसा कि इनके नाम से ही पता चलता है कि ये सरकारी नहीं होते अत: इनकी नियुक्ति, उपस्थिति, भुगतान, कार्य की शर्तें आदि किसी सरकारी कागज पर लिखित रूप में नहीं होती हैं वरन् इन्हें आपसी समझ-बूझ के आधार पर नियुक्त कर लिया जाता है, और ये नियोक्ता के प्रसाद पर्यन्त अपनी सेवाएं प्रदान करते रहते हैं। 
  अब प्रश्न यह उठता है कि जब सरकारी क्षेत्र में कर्मचारियों की संख्या इतनी अधिक है कि सरकार को समय से वेतन देने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो फिर इस तरह के कर्मचारियों का क्या औचित्य। इन असरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति के कारणों के रूप में आज की तकनीकी और खास-तौर पर कम्प्यूटर को दोष दिया जा रहा है।  
 सरकार ने असरकारी क्षेत्र को देखते हुए विचार किया कि यदि सरकारी कार्यालयों में कम्प्यूटर मुहैया करा दिया जाय तो ई-गवर्नमेंट की राह आसान हो जायेगी और सरकारी कामकाज के ढर्रे में भी सुधार आयेगा तथा समय से सूचनाएं शासन के पास उपलब्ध रहेंगी। बस सरकार ने आव देखा न ताव धड़ाधड़ कम्प्यूटर खरीदे जाने लगे और सरकारी कार्यालयों में स्थापित किये जाने लगे। लेकिन सरकार से यहीं चूक हो गयी। सरकार सरकारी कर्मचारियों को या तो प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं करा सकी, या तो प्रशिक्षण केवल कागजों पर ही संचालित होते रहे, या तो प्रभावी नियंत्रण के अभाव के कारण कर्मचारियों ने प्रशिक्षण में कोई रूचि नहीं ली। फलस्वरूप कर्मचारियों को प्रमाणपत्र तो मिल गया और उस प्रमाणपत्र के साथ उन्हें मिलने वाला टंकण भत्ता अब कम्प्यूटर भत्ता में भी बदल गया किन्तु वे आज भी अपने को कप्यूटर निरक्षर ही बताते हैं। फलस्वरूप कम्प्यूटर या तो डिब्बे में ही बन्द रहे, या अधिकारियों के बच्चों के लिए उनके घरों में चोरी छिपे स्थापित कर दिये गये या फिर जरूरत महसूस की जाने लगी कि किसी असरकारी व्यक्ति की सेवाएं ली जाएं।
   असरकारी कर्मचारियों की उत्पत्ति में यह मान लिया जाय कि सरकारी कर्मचारियों ने कम्प्यूटर प्रशिक्षण नहीं लिया इसलिए असरकारी कर्मचारी इस क्षेत्र में आये तो यह भी पूर्णतया सत्य नहीं है। आजकल विभागों में विभागाध्यक्षों में सत्य की शक्ति न होने के कारण उनका अधीनस्थों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं रहा। उसका परिणाम यह हुआ कि आज के विभागाध्यक्ष अपने अधीनस्थों को कड़ाई से कम्प्यूटर के प्रयोग के लिए बाध्य नहीं कर सके। प्रभावी नियंत्रण का अभाव न होने के कारण वे सरकारी कर्मचारी जो कम्प्यूटर के प्रति खासा उत्साहित थे अन्तत: वे हार गये और उन्होंने धीरे धीरे अपने को तकनीकी निरक्षर साबित करने में ही भलाई समझी। आप सोच रहे होंगे कि जो व्यक्ति एक बार कम्प्यूटर पर काम कर ले वह कम्प्यूटर के मोह से कैसे बच सकता है, यानि कि वह अपने को कम्प्यूटर निरक्षर भला क्यों कर साबित करेगा। इसका कारण मैं आपको समझाता हूं। श्रीमान क जो कि एक सरकारी कर्मचारी हैं, ने अपने अन्य सहयोगियों के साथ ही कम्प्यूटर प्रशिक्षण प्राप्त किया, चूंकि वे कम्प्यूटर के आने से व्यवस्था में होने वाले बदलाव के प्रति खासे उत्साहित थे इसलिए उन्होंने प्रशिक्षण को बड़ी निष्ठा व लगन से पूर्ण किया। प्रशिक्षण के बाद श्रीमान क ने अपना कार्यालयीय काम कम्प्यूटर पर करना प्रारम्भ कर दिया जबकि उनके अन्य साथी कर्मचारी या तो कम्प्यूटर पर गेम खेलते या इस तलाश में रहते कि श्रीमान क थोड़ा सा खाली हों तो उनका काम भी निपटा दें। शुरू में श्रीमान क ने यह सोचते हुए कि ये कम सीख पाये हैं इसलिए मदद करने की भावना से उनके कामों को निपटाते रहे। धीरे-धीरे उनके साथी कर्मचारियों ने श्रीमान क के इस नेक इरादे का फायदा उठाते हुए, इसे अपना हक समझ लिया। अब श्रीमान क की स्थिति यह हो चुकी थी कि उनके अन्य साथी उनके अधिकारी के समान उन्हें काम सौंप कर चाय पीने चले जाते और श्रीमान क घण्टों बैठकर दूसरों के काम निपटाते। यह स्थिति बहुत ही निराश करने वाली होती है कि आप जिस व्यक्ति के लिए परेशान हो रहे हों वह कहीं बाहर जाकर चाय पी रहा हो या कस्टमर सेट कर रहा हो। अन्तत: श्रीमान क ने इस तरह काम करने से हाथ खड़े कर लिये। साथी कर्मचारी जो कि पहले बड़ी मीठी-मीठी बातें किया करते थे अब उन्हें घमण्डी, लोभी और न जाने किन-किन सम्बोधनों से सम्बोधित करने लगे। अगर बात यहीं तक सीमित होती तब भी गनीमत थी। श्रीमान क के अपने काम तक ही सीमित रह जाने के कारण या अतिव्यस्तता के कारण अन्य साथी कर्मचारियों के कार्य में बाधा पहुंचने लगी। जब अधिकारी ने सम्बन्धित को फटकार लगाई तो उनसे अपने आप को निर्दोष बताते हुए कहा कि साहब क्या करें श्रीमान क कुछ काम हीं नहीं करना चाह रहे हैं हमेशा फाइलें लटकाये रखते हैं न जाने क्या चाहते हैं? ऐसी शिकायत कई लोगों से मिलने के बाद एक दिन श्रीमान क को अधिकारी के सामने पेश किया गया और उस दिन अधिकारी के द्वारा उनके कम्प्यूटर प्रशिक्षण और उनके कम्प्यूटर के प्रति उत्साह का जो परिणाम मिला कि श्रीमान क ने अपने को कम्प्यूटर निरक्षर मान लेने में ही भलाई समझी। अधिकारी के द्वारा साथी कर्मचारियों को कम्प्यूटर पर कार्य करने के लिए बाध्य करने के बजाय श्रीमान क को फटकार लगाना क्या उचित है? क्या यह श्रीमान क के काम के प्रति निष्ठा को प्रभावित नहीं करता? यह कहां तक उचित है कि श्रीमान क को केवल इस बात के दण्डस्वरूप कि वे कम्प्यूटर साक्षर हैं और कुशल कम्प्यूटर संचालक हैं, वे अपने काम के साथ साथ अन्य साथी कर्मचारियों का काम भी अकेले ही करें? बेहतर तो तब होता जब अधिकारी अन्य साथियों से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए कह देता। कुछ वर्ष पहले जब बैंकों का कम्प्यूटरीकृत हुआ था तो बहुत से कर्मचारी ऐसे थे जो कि कुछ ही वर्षों में सेवानिवृत्त होने वाले थे वे नये सिस्टम में काम नहीं करना चाहते थे लेकिन बैंक ने क्या किया? या तो काम करो या तो सेवानिवृत्ति ले लो। बस फिर क्या था सारे कर्मचारी कम्प्यूटर पर काम करने लगे और आज कर्मचारी भी नयी तकनीकी के प्रयोग से खुश है और ग्राहक भी संतुष्ट हैं। देश को कोषागारों का कम्प्यूटरीकृत किया जाना अपने-आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है और प्रभावी नियंत्रण का एक नायाब नमूना भी। साथी ही यह उनके सवालों का भी जवाब है जो कि कहते हैं कि सरकारी क्षेत्र में नयी व्यवस्थाएं लागू ही नहीं हो सकती।
 इन सरकारी क्षेत्र के असरकारी कर्मचारियों से जुड़ी बहुत सी बातें मेरे मन में आ रही हैं लेकिन उन सबको एक की पोस्ट में डाल देना उचित नहीं प्रतीत हो रहा है। इस पोस्ट में हमने उनके उत्पत्ति के कारणों में से कुछ पर विचार किया। आगे हम उनके उद्भव एवं विकास के साथ साथ उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर भी विचार करेंगे।