Saturday, August 1, 2009

अर्धकुम्भ मेला २००७ : कुछ संस्मरण

अर्धकुम्भ मेला २००७ : कुछ संस्मरण
गंगे तव दर्शनात मुक्ति:। सच ही कहा गया है कि जीव गंगा जी के दर्शन करने मात्र से मुक्त हो जाता है। कभी-कभी तो मैं सोचता हूं कि मैं कितना सौभाग्यशाली हूं जो कि मुझे गंगा मां की पूरे ग्यारह माह सेवा करने का अवसर मिला।
बात उस समय की है जब शताब्दी का प्रथम अर्धकुम्भ प्रयाग में लगने वाला था यानि कि सन २००७। यह मेला विश्व का सबसे बड़ा मेला है। इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मेले की तैयारी में लगभग एक वर्ष का समय लगता है। मेले की देखरेख के लिए एक मेलाधिकारी की नियुक्ति की जाती है जो कि एक आई०ए०एस० संवर्ग का अधिकारी होता है तथा कई अन्य अधिकारी जो कि पी०सी०एस० संवर्ग के होते हैं की नियुक्ति की जाती है। मेला अवधि में पूरा मेला एक स्वतंत्र जिला घोषित कर दिया जाता है जिसकी अपनी पुलिस व्यवस्था, परिवहन, विद्युत, स्वास्थ्य, खाद्य एवं सफाई की व्यवस्थाएं खुद की होती है और इन कार्यों के लिए अलग-अलग विभागों का गठन ठीक उसी प्रकार किया जाता है जैसे कि एक जिले में होता है।


पुलिस व्यवस्था के लिए एक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की नियुक्ति की जाती है जो कि आई०पी०एस० संवर्ग का अधिकारी होता है तथा उसका पूरा संगठन भी मेला अवधि तक के लिए नियुक्त किया जाता है। इसी प्रकार स्वास्थ्य विभाग का मुखिया मुख्य चिकित्साधिकारी होता है और जिले के समान ही उसका पूरा संगठन उसके साथ नियुक्त किया जाता है। पूरे मेले में एक प्रधान चिकित्सालय, कई क्षेत्रीय चिकित्सालय एवं सचल चिकित्सालयों की स्थापना की जाती है जिनमें सारी सुविधाएं पूर्णतया नि:शुल्क उपलब्ध होती हैं। जलनिगम एवं विद्युत विभाग में भी इसी प्रकार वरिष्ठ अधिकारियों की देखरेख में टीम का गठन किया जाता है। मेले में सिंचाई विभाग की भूमिका भी अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। सिंचाई विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी सम्पूर्ण मेला अवधि तक गंगा के जल स्तर, घुमाव एवं कटाव आदि के प्रति सजग रहते हुए यथावश्यक कार्यवाही करते रहते हैं। इस मेले के संचालन में केवल सरकारी अनुदान ही कार्य नहीं करता वरन अनेक गैर-सरकारी संगठनों के साथ साथ घाटियों एवं पण्डों का योगदान भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। जिस प्रकार जब सारी उंगलिया मिलकर मुठ्ठी का रूप धारण कर लेती हैं तो उनकी संयुक्त शक्ति कई गुना बढ़ जाती है और वे समस्याओं का सामना आसानी से कर सकते हैं उसी प्रकार ये सारे छोटे-बड़े संगठन मिलकर जब एक समान उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलकर कार्य करते हैं तो कैसे न मेला सकुशल सम्पन्न हो।

मेले में कोई अप्रिय घटना न घटे इसके लिए सभी जी-जान से प्रयास करते हैं फिर भी यदि कोई घटना घट ही जाये तो प्रभावित व्यक्ति को समुचित मुआवजा मिल सके इसके लिए मेला में आने वाले समस्त व्यक्तियों का दुर्घटना बीमा सरकार की ओर से कराया जाता है। जैसे ही कोई व्यक्ति मेला की सीमा में प्रवेश करता है वह इस बीमा योजना से आच्छादित हो जाता है। मेले में कल्पवासियों को सस्ते दर पर खाद्यान्न एवं मिट्टी का तेल आदि उपलब्ध कराने के लिए मेले का अपना खाद्य एवं आपूर्ति विभाग होता है जो कि पूरे मेला क्षेत्र में सस्ते गल्ले, चीनी एवं मिट्टी के तेल की दूकानों की स्थापना करता है तथा कल्पवासियों को राशनकार्ड वितरित करता है।


संचार के साधन आज के समय की प्रमुख आवश्यकताओं में से एक हैं। पूरे मेला क्षेत्र में डाकघरों की स्थापना की जाती है जहां से हर समय डाक विभाग की सुविधाओं का लाभ कल्पवासी एवं आम जन उठा सकते हैं। कई मोबाइल कम्पनियां सचल एवं अस्थायी टावरों की स्थापना भी पूरे मेला क्षेत्र में करती हैं। इसके साथ ही बी०एस०एन०एल० तथा अन्य संचार कंपनियों को अपनी क्षमता भी बढ़ानी पड़ जाती है। मेले का अपना स्वयं का सूचना विभाग होता है जिसमें जिला स्तर के सक्षम अधिकारी पूरे साजो-सामान के साथ नियुक्त किये जाते हैं। मीडिया सम्बन्धी सभी मामले सूचना विभाग ही देखता है।

मेले में आये आम-जन एवं कल्पवासियों की सुविधा के लिए लगभग सभी बैंक अपनी शाखाएं मेला क्षेत्र में खोलते हैं और चंूकि अब सभी बैंकों का कम्प्यूटरीकरण हो चुका है इसलिए किसी अन्य शाखा एवं मेला में स्थापित की गयी शाखा की कार्यपद्धति में कोई अन्तर नहीं रह जाता। कोई भी व्यक्ति चाहे कहीं का मूल निवासी हो वह मेा में स्थापित शाखा से अपने खाते से सम्बन्धित किसी भी प्रकार का लेन-देन कर सकता है। कई बैंक मेला क्षेत्र में अस्थायी एवं सचल ए०टी०एम० मशीनों की स्थापना भी करते हैं। इस प्रकार वे अत्याधुनिक तकनीकों के माध्यम से हर सुविधा उपलब्ध कराने का भरपूर प्रयास करते हैं। मेले की एक खास बात है कि मेला क्षेत्र में आने वाला कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सोता। पूरे मेले में जैसे दान-पुण्य करने की होढ़ सी लगी रहती है। मैने खुद मेला कार्यालय में लोगों को इस बात पर दुखी होते एवं अफसोस जाहिर करते हुए सुना है कि मैं इतना रूपये खर्च करने की इच्छा से आया था जबकि अभी तक मात्र इतने कम रूपये ही खर्च कर सका हूं। कोई मेले में लंगर चला रहा है जहां प्रतिदिन हजारों व्यक्ति भोजन करते हों तो कोई वस्त्र का दान कर रहा है, कोई नि:शुल्क दवा का वितरण कर रहा है तो कोई धार्मिक पुस्तकों का वितरण कर रहा है। सचमुच पूरा वातावरण ही दानमय हो जाता है।


मेला क्षेत्र में गंगा जी की शरण में आकर ही मुझे ये ज्ञान भी मिला कि गंगा मां क्यों हैं। बच्चा मां से कुछ भी मांगे तो मां अपने वात्सल्य के कारण मना नहीं कर पाती। इसी तरह गंगा मां से जो कोई जो कुछ मांगता है उसी उसकी मन की वस्तु मिल जाती है। कल्पना कीजिए यदि दान लेने वाला ही न होगा तो दान किसे दिया जायेगा। यहां दान लेने वालों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता। आप मेले में एक स्थान पर खड़े हो जाइये और अपने दायरे में आने वाले व्यक्तियों को अध्ययन कीजिए आपके ज्ञानचक्षु खुल जायेंगे। जितने व्यक्ति उतनी आकांक्षाएं और उनकी आकांक्षाएं पूरी हो रही हैं। जो नयनसुख के लिए आया है उसे नयनसुख मिल रहा है। जो व्यापार के लिए आया है उसे व्यापार मिल रहा है। जो धर्म के लिए आया है उसे धर्म करने का अवसर मिल रहा है। जो चोरी करने के लिए आया है उसे इतनी अपार भीड़ के कारण चोरी करने का अवसर मिल रहा है। जो बेईमानी करने के लिए आया है उसे बेईमानी करने का अवसर मिल रहा है। आपके दायरे में दुनिया का सत्य दिख जायेगा।

अभी चिठ्ठा लम्बा हो रहा है इसलिए अनुमति चाहूंगा। अगले चिठ्ठे में उस अनमोल बात या यूं कहें कि जो ज्ञान मुझे मेला में मिला, जो कि किसी खजाने से कम नहीं है, किताबों में पढ़ा था लेकिन प्रत्यक्ष देखने को मिला उसकी बात मैं बताउंगा तब तक के लिए विदा।